।। उदयपुर के मृतक का बयान ।।
मैं तो छह दिन बाद रोज़ी पे आया था
घर वाले मना करते थे
अभी मत जाओ
डरते थे खामखाह
कहीं कुछ भी तो नहीं था
सूरज बादलों में था
लगता था बरसात होगी
पुलिस ने कहा तो था
कुछ नहीं होगा
आप लोड मत लो
हम हैं ना
न जाओ तो ग्राहकी उजड़ती है
कब तक बैठता घर पर
दुकान खोलते ही आ गए ग्राहक
मैं खुश हुआ कि देखो
हाथ में हुनर हो तो
लोग इंतज़ार करते हैं
मैं तो नाप ले रहा था कुर्ते का
दूसरा मोबाइल में खेल रहा था कुछ
लिखने के लिए झुका था
कि उसने पकड़ लिया
मैं समझ नहीं पाया
कि उसका धक्का लगा
चीखते रहने के पहले
मैं यही पूछना चाहता था
क्यों मार रहे हो मुझे भाई
मैंने क्या किया है
आखिरी बात मैं पूरी कह भी नहीं सका
उसका छुरा मेरी गर्दन रेत रहा था
मैं तो कुछ भी नहीं था
पर मेरी हत्या एक संदेश थी
वह एक ऐलान थी
वह एक फ़ैसला थी
ख़ून की वह लम्बी लकीर देखी होगी आपने
वह एक बयान के नीचे खिंची हुई लाइन थी
पॉलिथीन के नीचे मेरी देह थी
पानी उसके ऊपर बरस रहा था
और खून उसके नीचे से बह कर
बरसात को लाल कर रहा था
मुझे क्या पता था एक दिन मैं भी टीवी पर आऊँगा
यह एकदम अचानक ही हो गया
वरना फ़ोन करके बताता सब नातेदारों को
कि मैं एक कपड़े सिलने वाला नामालूम
एक दिन किसी जिहाद के काम आऊँगा
और मुझे ऐसे क़त्ल किया जाएगा
जैसे एक बड़ी फ़तह की जा रही हो
👤 आशुतोष दुबे
👤 विवेक सूर्यामणी ओझा
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